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जीजेईपीसी के प्रतिनिधिमंडल ने सेक्टर को विश्वस्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए नीतिगत बदलावों एवं सुधारों का प्रस्ताव दिया। इस अवसर पर कई मुद्दों पर चर्चा हुई जैसे निर्यात के लिए सोने की उपलब्धता की चुनौती, गोल्ड ज्वैलरी के लिए लाइसेंसिंग की चुनौतियां, तथा रत्न एवं आभूषण सेक्टर को फिर से राष्ट्रीय प्राथमिकता के सेक्टरों की सूची में शामिल करना- इसे श्रम गहन उद्योगों जैसे टेक्सटाईल एवं लैदर के समकक्ष बनाना। प्रतिनिधिमंडल ने इंटेरेस्ट इक्वीलाइज़ेशन स्कीम को फिर से पेश करने (जिसकी अंतिम दिनांक 31 मार्च 2026 है) तथा एमएसएमई के मौजूदा वित्तीय वर्ष में लाभ की अधिकतम रु 50 लाख की सीमा को हटाने का सुझाव दिया, जिसके चलते निर्यातकों को सीमित सपोर्ट मिल पाता है। इसके अलावा उन्होंने प्लेटिनम ज्वैलरी के लिए अनुकूल प्रणाली के निर्माण का आह्वान भी किया। जीजेईपीसी ने भारत-यूएसए द्विपक्षीय कारोबार समझौते पर चर्चा को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के सक्रिय दृष्टिकोण की सराहना की। जिससे शुल्क की बाधाएं दूर होंगी तथा रत्न एवं आभूषण उद्योग में दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित होगी। इन्फ्रास्ट्रक्चर के नज़रिए से जीजेईपीसी ने ज्वैलरी पार्कों और सुरक्षित संस्थागत फंडिंग का प्रस्ताव दिया। काउन्सिल डायमण्ड्स के लिए जी7 ट्रेसेबिलिटी नियमों का लागू करने हेतु नोडल एजेंसी नियुक्त करने के पक्ष में भी है। जीजेईपीसी के चेयरमैन श्री किरीट भंसाली ने कहा, ‘‘हम माननीय मंत्री जी के प्रति आभारी हैं जिन्होंने उद्योग जगत को हमेशा अपना समर्थन दिया है। रत्न एवं आभूषण सेक्टर न सिर्फ भारत के निर्यात में योगदान देता है बल्कि 5 मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार के अवसर भी प्रदान करता है। नीतिगत सहयोग जैसे- कच्चे माल का आसान एक्सेस, निर्यात प्रक्रियाओं को आसान बनाने और हमारे सेक्टर को राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिकता दिए जाने से- हमें विश्वास है कि भारत इस क्षेत्र में ग्लोबल लीडर के रूप में अपनी स्थिति को बेहद मजबूत बना सकता है।’ |