जीआईए लैब ग्रोन हीरों के लिए करेगा नई डिसरप्टिव टेक्नोलॉजी का उपयोग
अब हीरों के मूल्यांकन के लिए नहीं होगा कलर एवं क्लेरिटी का इस्तेमाल

इसी साल के अंत में जीआईए (जेमोलोजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका) लैब ग्रेन हीरों की गुणवत्ता के मूल्यांकन के लिए डिसरप्टिव टेक्नोलॉजी का उपयोग शुरू कर देगा। लैब ग्रोन हीरों के मूल्यांकन के लिए अब कलर एवं क्लेरिटी का उपयोग नहीं किया जाएगा, जिसका इस्तेमाल जीआईए प्राकृतिक हीरों के लिए करता रहा है। संस्थान लैब ग्रोन हीरों की पहचान एवं मूल्यांकन का काम जारी रखेगा। इस नए सिस्टम के उपयोग से यह पुष्टि की जाएगी कि दिया गया आइटम लैब ग्रोन हीरा है और यह ‘प्रीमियम’ या ‘स्टैण्डर्ड’ कैटेगरी में आता है। हीरे के कलर, क्लेरिटी एवं फिनिश के आधार पर कैटेगरी तय होगी। अगर लैब ग्रोन हीरा गुणवत्ता के न्यूनतम मानकों पर खरा नहीं उतरता तो इसे जीआईए द्वारा मान्यता नहीं दी जाएगी। लैब ग्रोन हीरों के लिए संशोधित डिसरप्टिव सिस्टम के फाइनल होने के बाद, लैब ग्रोन हीरों के लिए जीआईए की मौजूदा सेवाएं जारी रहेंगी।

‘अन्य मानव निर्मित रत्न सामग्री की तरह, हमें लैब ग्रोन हीरों की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ने का अनुमान है।’’ टोम मोसेस, जीआईए के एक्ज़क्टिव वाईस प्रेज़ीडेन्ट एवं चीफ़ लैबोरेटरी और रीसर्च ऑफिसर ने कहा। ‘‘95 फीसदी से अधिक लैब ग्रोन हीरे कलर एवं क्लेरिटी की नैरो रेंज में आते हैं। यही कारण है कि जीआईए लैब ग्रोन हीरों के मूल्यांकन के लिए कलर एवं क्लेरिटी का इस्तेमाल नहीं कर सकता, जैसा कि प्राकृतिक हीरों के लिए किया जाता है।

जीआईए ने 1940 के दशक में कलर एवं क्लेरिटी के पैमाने पर प्राकृतिक हीरों का मूल्यांकन शुरू किया। अब लैब ग्रोन हीरों के मूल्यांकन के लिए इस नए बदलाव से उपभोक्ता दोनों उत्पादों के बीच का अंतर समझ सकेंगे और हर पहलु को जानने के बाद पूरे भरोसे के साथ प्रोडक्ट खरीदने का फैसला ले सकेंगे।

लैब ग्रोन हीरों के लिए जीआई द्वारा पेश किए गए संशोधित सिस्टम और मूल्य निर्धारण पर काम जारी है और तीसरी तिमाही में इसकी घोषणा की जाएगी। लैब ग्रोन हीरों के लिए जीआईए की मौजूदा रिपोर्ट्स वैद्य रहेंगी।