लॉकडाउन ५.० = भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत को जोरदार झटका

अब तक सभी इस खबर से रूबरू हो चुके हैं कि कोरोना संक्रमण ने भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत को जबरदस्त झटका दिया है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) गत ११ साल के न्यूनतम स्तर ४.२ प्रतिशत पर आ गया है। यह गत वित्त वर्ष के आखिरी तिमाही में ३.१ प्रतिशत के न्यूनतम स्तर तक चला गया था जबकि मार्च २०२० में लॉकडाउन केवल एक ही सप्ताह का था। वर्तमान वित्त वर्ष के मई के अंत तक ४ लॉकडाउन पूरे हो चुके हैं। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस पूरे दो महीने के लॉकडाउन और जीडीपी की कल्पना करें। स्थिति एकदम भयावह है। एक तरफ कोरोना वायरस जिस तरह तेज गति से बढ़ रहा है वहीं दूसरी तरफ भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत सबसे खराब चल रही है। इसमें सतत गिरावट देखी जा रही है।

सांख्यिकी मंत्रालय की तरफ से जारी ताज़ा आकड़ों के मुताबिक गत साल जीडीपी की विकास दर गिरकर पिछले साल के ६.१% से घट कर ४.२% रह गयी जो २०१४ में मोदी सरकार के सत्ता आने के बाद सबसे कम है। २०१९-२० की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च २०२० में तो जीडीपी की रफ़्तार गिरकर सिर्फ ३.१ % रह गयी।

आंकड़े दर्शाते हैं की भारत में कोरोना संकट ज्यादा फैलने से पहले ही अर्थव्यवस्था कमज़ोर पड़ती जा रही थी। इसलिए अब लॉकडाऊन के कारण वर्ष २०२०-२१ की पहली तिमाही में इसका और ज्यादा असर दिखेगा।

जीडीपी की विकास दर में गिरावट का मुख्य कारण कोरोना वायरस का बढ़ता प्रकोप है। कोरोना वायरस जिस गति से बढ़ रहा है, रिकवरी दर में भी गति आई है। अप्रैल माह में जहां यह रिकवरी २६ प्रतिशत थी आज यह बढक़र ४२ प्रतिशत से ज्यादा हो गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस कोरोना संकट को लॉकडाउन के दौरान कैसे मैनेज किया जाए।

गौरतलब है कि मई तक आवश्यक सेवाओं को छोडक़र अधिकांश लोग अपने घरों में ही हैं। ऐसे में यदि लॉकडाउन समाप्त किया जाता है तो परिदृश्य और परिणाम अत्यंत भयावह हो सकते हैं। कोरोना का जबरदस्त प्रसार हो जाएगा। और यदि ऐसा हुआ तो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह बड़ा सिरदर्द हो जाएगा। एक और लॉकडाउन बर्दाश्त नहीं किया जा सकेगा।

कोविद से पहले भी भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास गति धीमी रही थी। आठ कोर सेक्टर के आउटपुट और इंडस्टिड्ढयल प्रोडक्शन (आईपी) के डेटा नकरात्मक थे। नौकरियां कम होने लगी थी। लोग बेरोजगार ज्यादा हो रहे थे। बेरोजगारी का स्तर चरम की ओर जा रहा था। इससे युवाओं में बेरोजगारी को लेकर खौंफ पनप रहा था। भारत की युवा आबादी अब इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।

ऐसे हालात में राजकोषीय प्रोत्साहनों की घोषणा सरकार की ओर से पहले तो सकारात्मक पहल लगी। लेकिन इससे भी कुछ ज्यादा किया जा सकता था। मैन्युफैक्चरर्स और कारोबारियों को सीधे कैश ट्रांसफर से लाभान्वित किया जा सकता था। अर्थव्यवस्था में इंडस्ट्रियल क्रेडिट ग्रोथ भी नकरात्मक रही है। यह एक ऐसा सेक्टर है जहां बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन की क्षमता है। ऐसे सेक्टर को छोड़ देना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इसके अलावा, बैंक भी जो पिछले वर्षों के दौरान एनपीए से पीड़ित थे, इंडस्ट्रियल सेक्टर को पैसा देने से कतराने लगे हैं। एनपीए का जोखिम उन्हें डरा रहा है। वैसे आरबीआई इन सेक्टर के लिए पूरी कोशिश कर रहा है कि उन्हें बैंकों से इन्हें सारी सुविधाएं मिलें और बाजार में तरलता बनी रहे। इसलिए उसने ब्याज दर को अबतक के न्यूनतम स्तर पर ला दिया है। इन सबके बावजूद क्रेडिट ग्रोथ घटती जा रही है। यह बहुत ही चिंतनीय है। ऐसे में यदि लॉकडाउन और बढ़ा तो आर्थिक गतिविधियां और शिथिल पड़ जाएंगीं।

इसलिए, यह साफ है कि भारत आज वायरस के बढ़ते प्रकोप और आर्थिक मंदी का जबरदस्त सामना कर रहा है। इन दोनों का फिलहाल समाधान उपलब्ध नहीं है। इसलिए लोगों को सावधान रहना होगा और सावधानी बरतनी होगी।

इसबीच, एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग ने एक बयान जारी करके भारतीय अर्थवस्था की विकास दर इस साल ५ फीसदी नकरात्मक होने का संकेत दिया है। एसएंडपी का कहना है कि मार्च २०२१ में समाप्त हो रहे वित्त वर्ष के लिए अपने वृद्धि पूर्वानुमान को घटाकर नकारात्मक ५ फीसदी कर दिया है। इस समय हमारा मानना है कि महामारी का प्रकोप तीसरी तिमाही में चरम पर होगा। रेटिंग एजेंसी फिच और क्रिसिल ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था में ५ फीसदी संकुचन का अनुमान लगाया है।

बयान में कहा गया कि सबसे अधिक रोजगार देने वाला सेवा क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। श्रमिक भौगोलिक रूप से विस्थापित हो गए हैं और उन्हें लॉकडाउन उबरने में वक्त लगेगा। एसएंडपी के मुताबिक इस दौरान रोजगार की स्थिति नाजुक बनी रहेगी।